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मेदांता के डॉक्टरों ने रचा इतिहास, पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे छोटी नवजात ने जीती जिंदगी की जंग

मेदांता के डॉक्टरों ने रचा इतिहास, पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे छोटी नवजात ने जीती जिंदगी की जंग

  • मेदांता हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने समय से पूर्व गर्भावस्था के 25वें सप्ताह में कराया सफल और सुरक्षित प्रसव

लखनऊ, 3 जुलाई, 2024: मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ के डॉक्टरों ने एक बार फिर अपनी अद्भुत चिकित्सा क्षमताओं के जरिए न केवल 25 सप्ताह की गर्भवती नोरी (बदला हुआ नाम) का समय से पहले प्रसव कराया बल्कि मां और बच्ची की जान भी बचा ली। शालिन (बदला हुआ नाम), जो जन्म के समय केवल 685 ग्राम वजन की थी, पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे कम उम्र की और सबसे छोटी, समय से पहले जन्मी बच्ची है।

मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ के नियोनेटोलॉजी एवं चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर के डायरेक्टर डॉ. आकाश पंडिता ने बताया, "पूर्वी उत्तर प्रदेश की रहने वाली नोरी (बदला हुआ नाम) के लिए पिछली सर्दियां बेहद मुश्किल भरी रहीं। 25 सप्ताह की गर्भवती नोरी को समय से पहले प्रसव के लिए अस्पताल ढूंढने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। उनके पेट से रिसाव हो रहा था, जिसके कारण भ्रूण को खतरा था और संक्रमण का भी जोखिम बढ़ गया था। बेहतर इलाज की उम्मीद में उन्होंने अपने घर सुल्तानपुर से लखनऊ जाने का फैसला किया।"

लेकिन लखनऊ पहुंचने पर भी उन्हें कई अस्पतालों ने प्रसव के लिए मना कर दिया गया क्योंकि वहां डॉक्टरों का मानना था कि इतनी जल्दी जन्मने वाले बच्चे के जीवित रहने की संभावना बेहद कम होती है । वह 25 सप्ताह की गर्भावस्था में मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ पहुंची। यहां डॉक्टरों ने उन्हें परामर्श दिया और सकारात्मक परिणाम की उम्मीद के साथ आश्वस्त कि कि माँ और बच्चा दोनों सुरक्षित रहेंगे। 

इस जटिल प्रसव को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने अथक प्रयास किए। नूरी की बच्ची शालिन (बदला हुआ नाम) का जन्म कराया, लेकिन जन्म के समय बच्ची का वजन 685 ग्राम था, जो चिंता का विषय था। शालिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे कम उम्र की और सबसे छोटी, समय-से-पहले जन्मी बच्ची है। उसका जन्म सामान्य से 13-15 सप्ताह पहले हुआ, जबकि 37 से 40 सप्ताह की गर्भावस्था अवधि को आदर्श माना जाता है। जन्म के समय शालिन का वजन 2,900 ग्राम के आदर्श वजन के मुकाबले सिर्फ 685 ग्राम था, जो आदर्श वजन का केवल 23% था।

25 सप्ताह के अल्पकालिक गर्भावस्था में जन्म लेने के कारण उसके अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हुए थे। उसे दो महीने से अधिक समय तक नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एन.आई.सी.यू.) में भर्ती रहना पड़ा। अब, जन्म के छह महीने बाद नियमित जांच और देखभाल के साथ, वह एक खुशमिजाज और स्वस्थ बच्ची है जिसका विकास सामान्य रूप में हो रहा है।

 डॉ. आकाश पंडिता ने बताया, “जन्म के समय शालिन को सांस लेने में तकलीफ और शॉक के लक्षण थे, जिसके कारण उसे तुरंत एन.आई.सी.यू. में भर्ती कराना पड़ा। जन्म के समय उसका वजन, एक पानी की बोतल से भी कम था और उसके अंगों का विकास पूरी तरह से नहीं हुआ था। शालिन को “लेस इनवेसिव सरफैक्टेंट एडमिनिस्ट्रेशन”  नामक तकनीक के माध्यम से सर्फेक्टेंट दिया गया, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना ऑक्सीजन प्रदान करने का सबसे कारगर  तरीका है। इसके साथ ही उसे नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन भी दिया गया। शालिन को गंभीर सेप्सिस (रक्त संक्रमण) भी हुआ था, जिसका इलाज किया गया। धीरे-धीरे, शालिन को "कंगारू मदर केयर" और ट्यूब फीडिंग (नाक या मुंह के माध्यम से दूध पिलाना) दी गई। जब तक वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो गई और सामान्य भोजन ग्रहण करने में सक्षम नहीं हो गई, तब तक उसे "टोटल पैरेंटरल न्यूट्रिशन" नामक तकनीक के माध्यम से पोषक तत्व दिए गए, जिसमें पोषक तत्वों का मिश्रण सीधे नसों के माध्यम से डाला जाता है।"

डॉ. पंडिता ने यह भी बताया, "बहुत कम वजन के साथ जन्मे बच्चों में केवल 20%-40% ही जीवित रह पाते हैं। शालिन आज स्वस्थ है, यह हमारे अत्याधुनिक नवजात शिशु देखभाल इकाई के विशेषज्ञों के प्रयासों का परिणाम है। गर्भधारण की अवधि और जन्म के समय और वजन दोनों के मामले में, शालिन पूर्वी यूपी सबसे छोटी बच्ची है। शालिन का इलाज करना मुश्किल था क्योंकि वह बहुत कम वजन वाली थी। इस वजन के बच्चे बहुत कमजोर होते हैं और उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इन छोटे बच्चों की देखभाल में सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि वे जीवित रहें और उनका मस्तिष्क, आंखें और कान ठीक से विकसित हों। इन बच्चों में मस्तिष्क में रक्तस्राव, मस्तिष्क के विकास में देरी, मस्तिष्क में गांठें, और दृष्टि और श्रवण दोष होने का खतरा अधिक होता है, जिसके होने की संभावना 50%-60% फीसदी तक होती है। 

 शालिन के माता-पिता कहते हैं, "हमारी बेटी एक योद्धा है। वह 25 सप्ताह की उम्र में पैदा हुई थी, लेकिन वह जीवित है और उसने सभी चुनौतियों का सामना किया है और उन्हें पार कर लिया है। वह पूर्वी उत्तर प्रदेश में समय से पहले जन्मी सबसे कम उम्र की बच्ची है। वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है।“

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