मातृ भाषा का स्थान सर्वोच्च, विश्व में हिन्दी का वर्चस्व, स्वाभिमान होती है स्वभाषा - राज्यपाल
जयपुर, 02 सितम्बर। राज्यपाल सचिवालय राजभवन जयपुर , राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने कहा है कि स्वभाषा से स्वाभिमान जागृत होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी का वर्चस्व विश्व में बन रहा है। शिकागो में स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिया गया हिन्दी में भाषण और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विदेशों में दिये गए हिन्दी में भाषण के प्रभाव से सभी लोग परिचित हैं। श्री मिश्र ने कहा कि मातृ भाषा का स्थान सर्वोच्च होता है।
राज्यपाल श्री मिश्र बुधवार को राजभवन से नई शिक्षा नीति का भाषिक संदर्भ और हिन्दी के वैश्विक परिदृश्य पर तीन दिवसीय अन्तराष्ट्रीय वेबिनार को सम्बोधित कर रहे थे। राज्यपाल श्री मिश्र ने अपने उद्बोधन की शुरूआत में पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के निधन पर श्रद्वाजंलि व्यक्त करते हुए कहा कि स्व. मुखर्जी चतुर्दिक व्यक्ति के धनी थे और वे राजनीति के अजात शत्रु थे। वेबिनार का आयोजन वाराणसी के राजघाट स्थित बंसत महाविद्यालय द्वारा किया गया।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि उन्होंने न केवल देश में बल्कि जापान और जर्मनी में भी हिन्दी में ही भाषण दिया था। श्री मिश्र ने कहा कि हिन्दी के प्रति विश्व में रूचि बढ़ती जा रही है। हिन्दी को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा मिल रहा है। यह सशक्त भाषा है।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि 21 वीं शाताब्दी का युग तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। आज विश्व में संस्कृत सहित सभी भाषाओं में साॅफ्टवेयर विकसित हो रहे हंै तथा भाषा विज्ञान के नये सिद्वान्त भी तद्नुसार विकसित हो रहें है। प्रौद्योगिकी से एक सार्वभौमिक भाषा के जन्म लेने की संभावना भी बनती जा रही है। पूरे विश्व में हिन्दी भाषा बोलने वालों की संख्या 50 करोड़ से अधिक है, जो सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में विश्व में दूसरे स्थान पर है।
वेबिनार में पदमश्री तामियो मिजोकोमी ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री ने विदेशों में हिन्दी बोलकर विश्व में लोगों का मन जीत लिया है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी सभी को सीखनी चाहिए लेकिन मातृभाषा सीखना आवश्यक है। सिद्वार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति श्री सुरेन्द्र दुबे ने कहा कि हिन्दी मानसिक स्वाधीनता की भाषा है। स्वस्थ सांस्कृतिक बीजारोपण के लिए बालमन में मातृ भाषा का प्रभाव होना आवश्यक है। प्रो. जे.एस. राजपूत ने कहा कि नई शिक्षा नीति नये मार्ग खोलेगी। डाॅ. शशिकला त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षा व भाषा का सम्बन्ध घनिष्ठ होता है। स्वागत भाषण श्री एस.एन. दुबे ने किया। आभार डाॅ. अल्का सिंह ने व्यक्त किया। संचालन डाॅ. वंदना ने किया। इस अवसर पर राज्यपाल के प्रमुख विशेषाधिकारी श्री गोविन्दराम जायसवाल भी मौजूद थे।
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