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वर्षा जल संचयन द्वारा भू.जल स्तर को बनाये रखने हेतु ‘‘भुंगरु प्रणाली’’ के ट्रायल के लिए गन्ना आयुक्त ने जारी किये निर्देश 

वर्षा जल संचयन द्वारा भू.जल स्तर को बनाये रखने हेतु ‘‘भुंगरु प्रणाली’’ के ट्रायल के लिए गन्ना आयुक्त ने जारी किये निर्देश 



  •  उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद् शाहजहांपुर के उपकेन्द्रों क्रमशः अमहट (सुल्तानपुर) तथा कटयां सादात (गाजीपुर) में ‘‘भुंगरु प्रणाली’’ का होगा ट्रायल

  •  इस जल संरक्षण प्रणाली में वर्षा जल को भूमि में रिचार्ज कर कम पानी उपलब्धता वाली जगहों पर गन्ने की खेती संभव होगी


लखनऊः 31 जुलाई, 2020


प्रदेश के आयुक्त, गन्ना एवं चीनी श्री संजय आर. भूसरेड्डी ने इस संबंध में बताया कि गन्ने की खेती हेतु पानी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्षा जल को हारवेस्टिंगकर भू-जल स्तर को रिचार्ज करने हेतु उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद् शाहजहांपुर के उपकेन्द्रों गन्ना शोध केन्द्र अमहट, सुल्तानपुर तथा कटयां सादात, गाजीपुर में ट्रायल के तौर पर ‘‘भुंगरु प्रणाली’’ की स्थापना कराने हेतु आवश्यक निर्देश जारी किये गये हैं।


इस संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुये श्री भूसरेड्डी ने बताया कि ‘‘भुंगरू’’ एक जल सरंक्षण तकनीक है। इस तकनीक में कंक्रीट का घेरा बनाकर उसके बीच एक 10 से 15 फीट की पाइप भूमि में डाल दी जाती है जिसके माध्यम से वर्षा के दिनों में वर्षा का पानी इकट्ठा होकर भूमि में रिचार्ज हो जाता है। किसान आवश्यकता पड़ने पर उस पानी को मोटर पम्प से बाहर निकालकर सिंचाई कर सकते हैं। ये तकनीकी मानसून के दौरान होने वाले पानी के नुकसान को भी बचाती है।


उन्होंने बताया कि यह पद्धति परम्परागत रूप में गुजरात के कई क्षेत्रों में प्रचलित है। यह पद्धति प्रायः उन क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी है जहां वर्षा का पानीए ऊसर प्रभावी क्षेत्रों में हार्डपैन बन जाने अथवा ढलान वाले क्षेत्रों में रिचार्ज नहीं हो पाने के कारण बहाव के माध्यम से नष्ट हो जाता है। श्री भूसरेड्डी ने वाटर हारवेस्टिंग के अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद् को निर्देशित किया है कि गन्ना शोध केन्द्र अमहट, सुल्तानपुर तथा कटयां सादात, गाजीपुर में ट्रायल के तौर पर ‘‘भुंगरु प्रणाली’’ की स्थापना की जाये जिससे प्राप्त परिणामों के आधार पर प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी इस प्रणाली का प्रयोग कर प्रदेश के गन्ना किसानों को लाभान्वित किया जा सके। इस तकनीक के प्रयोग से वर्षा जल का भरपूर उपयोग होगा तथा गिरते भू-जल स्तर को भी रोकने में सहायता मिलेगी।


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