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पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि सपने दिखाने और जुमलों में भटकाने की कला कोई भाजपा नेतृत्व से सीखे

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि सपने दिखाने और जुमलों में भटकाने की कला कोई भाजपा नेतृत्व से सीखे


 समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि सपने दिखाने और जुमलों में भटकाने की कला कोई भाजपा नेतृत्व से सीखे। किसानों को आय दुगनी करने और फसलों की लागत से डेढ़ गुना मूल्य दिलाने के वादे तो रोज-रोज दुहराए जाते हैं लेकिन हकीकत में अभी तक भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री जी का कोई वादा पूरा नहीं हुआ है। अभी केन्द्र सरकार का जो बजट पेश हुआ है उसमें भी किसानों के लिए कोई ठोस योजना नहीं प्रस्तुत हुई। यह कोई नहीं बताता कि सन् 2022 तक किसान की दशा में कैसे सुधार आएगा कैसे उसकी आय दुगनी होगी?


    अर्थव्यवस्था का जिक्र बिना खेती-किसानी और गांव-गरीब के बिना अधूरा रहता है। देश की 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी इसी पर निर्भर है। लेकिन आजादी के 73 वर्षों के बाद भी किसान की हालत नहीं सुधरी है। ग्रामीण आय को बढ़ाने और किसानों की समस्याओं के समाधान की दिशा में ठोस प्रयास नहीं हुए है। किसान आज भी कर्ज में डूबा आत्महत्या कर रहा है। खाद, पानी, बिजली, कृषि उपकरण सभी तो मंहगे है जबकि किसान को अपनी फसलों का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाता है। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसान अभी तक बकाया भुगतान के लिए भटक रहा है।


    भाजपा की केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट में आकर्षक योजनाओं का दिलचस्प ब्यौरा है। किसान को 16 सूत्रीय फार्मूले का लालच दिया गया है। ‘किसान रेल‘ और ‘कृषि उड़ान‘ का सपना भी दिखा दिया है। नीलीक्रांति और श्वेतक्रांति का नारा भी है। अब भाजपा राज में कांट्रैक्ट फार्मिंग का राग छेड़ा गया है। लेकिन इसमें पानी के संकट से जूझ रहे बुंदेलखण्ड का कोई जिक्र नहीं है कि वहां किसान कैसे अपना खेत सींचेंगे?


     वास्तव में भाजपा की नीति और नीयत दोनों में खोट है। उसकी कथनी-करनी में भारी अंतर है। बड़ी-बड़ी बातें किसानों के फायदे की और किया यह कि भारतीय खाद्य निगम के फण्ड में 76 हजार करोड़ की कटौती कर दी। इस कटौती का सीधा असर सरकारी खरीद पर पड़ेगा। किसान आज भी बिचैलियों की दया पर आश्रित है और कल भी उसकी वही हालत रहेगी। कृषि और भूमि सम्बंधी कानूनों में सुधार पर भाजपा सरकार ने मुंह फेर लिया है।


     यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि फौज में ज्यादातर किसानों के बेटे ही भर्ती होते हैं। सीमाओं पर तैनात जवानों पर ही देश की रक्षा निर्भर है। लेकिन उनके गांव में रहने वाले किसान पिता को तो आए दिन समस्याओं से जूझना पड़ता है। फौजी के परिवार की सुरक्षा सरकार का कर्तव्य है। अच्छा होता दो शब्द भाजपा सरकार फौज के जवानों और किसानों के अटूट रिश्तों पर भी अपने बजट में उल्लेख कर देती। आखिर क्या कारण है कि भाजपा के चिंतन के केन्द्र में देश की सीमाऐं और खेतों के रिश्तों का संतुलन क्यों नहीं बैठता है? पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान‘ का जो नारा दिया था आज भी भाजपा को उसकी प्रासंगिकता की समझ क्यों नहीं?


     भाजपा को स्मरण रखना चाहिए कि सर्व प्रथम केंद्र में वित्तमंत्री रहते चौधरी चरण सिंह ने 70 प्रतिशत बजट गांव-खेती के लिए रखा था जबकि चौधरी साहब की किसान उन्मुख नीतियों का अनुसरण करते हुए उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार के समय गांव किसान की उन्नति लिए वृद्धि कर बजट का 75 प्रतिशत कर दिया गया था। गन्ना किसानों को पहली बार 40 रूपए बढ़ाकर समर्थन मूल्य दिया गया था। किसानों को फसल बीमा, पेंशन की सुविधा दी गई थी। भाजपा राज में किसान के हितों को कारपोरेट घरानों के लिए बलि कर दिया जा रहा है। सीमा और खेत के संतुलन के लिए आवश्यक है कि सरकारों को किसान और जवान के सरोकारों को अपना एजेण्डा बनाना चाहिए।


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