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दुर्लभ बीमारियों को लेकर हुआ जागरूकता कार्यक्रम


दुर्लभ बीमारियों को लेकर हुआ जागरूकता कार्यक्रम



  • लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स सपोर्ट सोसाइटी ने पीजीआई लखनऊ के साथ मिलकर किया कार्यक्रम


लखनऊ। देशभर में रेयर डिजीज अवेयरनेस माह के रूप में मनाये गये फरवरी के अन्तिम दिन लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स सपोर्ट सोसाइटी ने संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) लखनऊ के जेनेटिक्स विभाग के साथ मिलकर दुर्लभ बीमारियों को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। पीजीआई के टेलीमेडिसिन हॉल में आयोजित हुये कार्यक्रम का लक्ष्य दुर्लभ बीमारियों खासतौर से एलएसडी जैसेकि गॉशर, फैब्री, एमपीएस आदि के बारे में जागरूकता फैलाना था। इस मौके पर डॉ अमरेश बहादुर सिंह, डीजीएम, नेशनल हेल्थ मिशन, डॉ शुभा फड़के, हेड, एक्जीक्यूटिव मेंबर, आईएपी मेडिकल जेनेटिक्स विभाग, पीजीआई, लखनऊ, डॉ श्रीश भटनागर, प्रेसिडेंट, लखनऊ चैप्टर ऑफ आईएपी, विकास भाटिया, एमईआरडी और मंजीत सिंह, प्रेसिडेंट, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स सपोर्ट सोसाइटी ने एलएसडी के विभिन्न पहलुओं, परिवारों पर पड़ने वाले इसके असर, लंबे समय के प्रबंधन और चुनौतियों पर अपने विचार रखे।


तमाम मरीज इस अवसर पर दुर्लभ बीमारियों पर जागरूकता फैलाने के लिए अपने परिवारजनों के साथ आए और अपना सामाजिक योगदान दिया ताकि कोई अछूता न रह जाए। इस जागरूकता अभियान में एलएसडी से जूझ रहे परिवारों के सामने उपजी चुनौतियों पर भी चर्चा की गई और सरकार से आग्रह किया गया कि वह उनके इस संघर्ष में इलाज के लिए सहयोग दे। इन मरीजों की समस्याओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय ने एक महीने की अवधि में इनकी स्थिति के विषय में तमाम सुनवाइयां की। सभी पहलुओं पर विचार करने के पश्चात उच्च न्यायालय ने मरीजों के पक्ष में अपना फैसला दिया और एसजीपीजीआई को फिर से इलाज चालू करने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश में इस समय लगभग 21 मरीज दुर्लभ बीमारियों के हैं, जिनमें से सात मरीज सरकार से इलाज के लिए किसी भी तरह की सहायता न मिलने के कारण मौत का शिकार हो चुके हैं। हाल ही में भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने नेशनल पॉलिसी फॉर रेयर डिजीज 2020 के ड्राफ्ट  को जारी किया है। यह नीति वास्तविकता से काफी दूर है और इसमें “उपचार योग्य” एलएसडी को बेहद जरूरी उपचार मुहैया कराने में असली हित का अभाव है क्यों।कि इसे कैटेगरी तीन में डाला गया है। मंजीत सिंह ने कहा कि हम पिछले 10 वर्षों से एलएसडी से प्रभावित मरीजों और उनके परिवारजनों के लिए अनवरत रूप से कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने रेयर डिजीज को लेकर दो बार राष्ट्रीय नीति जारी की जिसमें उपचारयोग्या एलएसडी का उल्लेख विशेष रूप से किया गया है। दुर्भाग्यवश, जो मरीज एलएसडी के शिकार हैं उनके इलाज के लिए कोई गंभीर बात सामने नहीं आयी है। हाल ही में जारी की गई रेयर डिजीज 2020 की राष्ट्रीय नीति में एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ईआरटी ) का उल्लेख है जिसके सार्थक परिणाम बताये गए हैं और मरीजों को सामान्य जीवन में सहायता करने और समाज के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में स्थापित करने की बात कही गई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने क्राउड-फंडिंग का जो सुझाव दिया है वह अस्थायी व्यवस्था है और उसको कैसे लागू किया जाएगा, यह साफ नहीं है। प्रदेश में इस तरह के मरीजों की संख्या अभी ज्यादा नहीं है जिसमें से कुछ पहले ही इलाज के न मिलने  के कारण मर चुके हैं।


स्वालस्य्  विभाग को बाकी बचे मरीजों को फौरन उपचार मुहैया कराना चाहिए। इससे उनकी जिंदगी बचाई जा सकती है। डॉ शुभा फड़के-प्रोफेसर एवं हेड, डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स,लखनऊ ने कहा, प्रारंभिक पहचान करना इलाज और समुचित देखभाल के लिए जरूरी है। दुर्लभ बीमारियों की पहचान में देरी होती  है क्योंकि इसके विषय में जागरुकता की कमी है और डायग्नो स्टिक सुविधाओं की सीमित उपलब्धतता है। जेनेटिक डिसऑर्डर रेयर डिसऑर्डर में 80 प्रतिशत योगदान करते हैं। जेनेटिक पैथोफिजियोलॉजी पर आधारित उपचारों की मौलिक रणनीतियों ने स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी एवं लाइसोसोमल डिसऑर्डर्स जैसेकि गॉशर,पोम्पेर, फैब्री आदि में नाटकीय परिणाम दिखाये हैं। एलएसडी के लिए ईआरटी ने जिंदगी की गुणवत्तास एवं परिणामों को बेहतर किया है। ईआरटी को अपनाने वाले अधिकांश मरीज एक उपयोगी एवं खुशहाल जीवन जी रहे हैं। उपचार की उपलब्धरता के साथ, क्लीईनिकल प्रस्तुवतिकरण पर आधारित इन डिसऑर्डर्स की पहचान करना महत्व पूर्ण है इससे उपचार करने योग्यक डिसऑर्डर्स की पहचान होती है। न्यू्बॉर्न स्क्री निंग को भी लागू करने की आवश्य्कता है।


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