अरुण मुनेश्वर जी द्वारा भारत में हिंदी साहित्य के इतिहास पर परिचर्चा
शंकर नगर में स्थित शंकरराव देव संवाद कक्ष में संस्था का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। वंदे मातरम के पश्चात सरस्वती माता की प्रतिमा पर पुष्प अर्पण किया गया। शीतल नागपुरी जी ने सरस्वती वंदना की और इसके पश्चात परिचर्चा का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
सबसे पहले अरुण मुनेश्वर जी ने भारत में हिंदी साहित्य का इतिहास पर परिचर्चा का प्रारंभ किया ।लगभग 15 मिनट में उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार चरणों में विभक्त करते हुए प्रत्येक चरण का पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया। जो वह अपने परिचर्चा में विचार रख रहे थे तो हमें लगा जैसे हम अपने ग्रेजुएशन करने के समय कक्षा में बैठे हो और अध्यापक हमें हिंदी साहित्य का इतिहास बता रहे हों।15 मिनट के अंदर उन्होंने हिंदी साहित्य का इतिहास जिस तरह से वर्णित किया और जितने रचनाकारों के बारे में उन्होंने उसके अंदर अपने विचार रखे। काल का निर्धारण क्यों और कैसे हुआ? इस पर भी उन्होंने अपने विचार रखे ।कार्यक्रम का शुभारंभ इतना बढ़िया हुआ कि इसके बाद मधु पाटोदिया जी ने इसी विषय पर अपना लिखित आलेख पढ़ा। साथ ही उन्होंने बीच-बीच में इससे संबंधित विचारों को कुछ रचनाकारों की कुछ रचनाओं को भी उल्लेखित किया।
रामकृष्ण सहस्त्रबुद्धे जी ने पुरस्कार और सम्मान से कलाकारों को कलमकारो /कलाकारों को लाभ या हानि इस विषय पर अपना सारगर्भित वक्तव्य देकर यह बताने का प्रयास किया कि पुरस्कार और सम्मान से लाभ मिलने पर और इसको न प्राप्त करने पर जो हानि का आभास होता है वह किस तरह का होता है और कैसा होता है और क्यों होता है ? इन सब तथ्यों पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। इसी विषय पर पारसनाथ शर्मा जी ने भी अपना वक्तव्य दिया ।पुरस्कार और सम्मान से व्यक्ति विशेष का प्रचार प्रसार होता है। इसको उन्होंने अपनी बातों में रखा। इसके पश्चात सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले विषय पर जब पर चर्चा प्रारंभ हुई तो सबसे पहले शीतल नागपुरी जी ने व्यंग के अंतर्गत हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन प ई इस पर बहुत ही धमाकेदार 15 मिनट का अपना वक्तव्य दे परिचर्चा को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। उन्होंने अपने महत्वपूर्ण परिचर्चा के विषय में व्यंग के जरिए लोगों की मानसिकता को संदर्भित करते हुए यह बताने का प्रयास किया की लोगों ने ही हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा नहीं बनने दिया है। इस बीच कोयल बनर्जी नामक एक बिटिया ने कविता क्या है? इसको अपने शब्दों में बताने का प्रयास किया । हीरा मन लानजे जी ने इंदु शर्मा जी ने शीतल नागपुरी जी ने इस मध्य अपनी-अपनी रचनाएं भी सुनाई। रविंद्र देवधरे जी ने हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पाई? इस पर अपना 15 मिनट का वक्तव्य दे परिचर्चा को एक गति प्रदान की। जिसके अंदर उन्होंने विभिन्न उदाहरणों के जरिए बताने का प्रयास किया हिंदी राष्ट्रभाषा को लेकर किस तरह की सोच हमारे देश में है ।इसी विषय से जुड़ा हुआ उन्होंने एक अपनी रचना भी सुनाई।
महाराष्ट्र पुलिस में कार्यरत प्रभात तिवारी जी ने अपनी एक देशभक्ति पूर्ण रचना एक बार मेरी सेना को अपनी मर्जी से जी लेने दो सुना ई। ओमप्रकाश शिव जी ने आदमी को इंसान बनाना आसान है नामक कविता सुनाई महाराष्ट्र राज्य में युवा कलाकारों का योगदान तथा महाराष्ट्र में हिंदी कविता का भविष्य इस विषय पर परिचर्चा में बहुत से लोग तैयारी करके आए थे। परंतु समय अभाव के कारण उनके वक्तव्य को नहीं सुना जा सका। परिचर्चा और काव्य पाठ के अंतिम दौर में नरेंद्र परिहार जी ने रातों का सफर नामक अपनी कविता सुना ई।
कार्यक्रम के शुरुआत में ही जिस संस्थान में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था उसके सचिव जोशी जी जो मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान थे। उन्होंने परिचर्चा में उल्लेखित सभी विषयों पर अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया और उन्होंने बताया कि किस तरह से महाराष्ट्र में मराठी भाषा में जो कार्यक्रम होता है तो हॉल खचाखच भरा होता है और जब राष्ट्रभाषा हिंदी पर वार्ता चर्चा पर चर्चा होती है तो मुश्किल से 20 __25 लोग आते हैं।यही स्थति जब बरकरार रहेगी तो हिंदी राष्ट्रभाषा कैसे बन पाएगी ? इस पर उन्होंने अपने वक्तव्य दिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुधीर सिंह सुधाकर जी ने संस्था के बारे में संस्था के कार्य प्रणाली के बारे में बताते हुए श्री नरेंद्र परिहार जी को राष्ट्रीय संयोजक पश्चिम भारत नियुक्त किया तथा उनको शॉल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया तथा मुख्य अतिथि जोशी जी ने नरेंद्र परिहार जी को पद के अनरुप परिचय पत्र प्रदान किया।
कार्यक्रम के अंतिम भाग में सुधीर सिंह सुधाकर जी ने अपनी एक रचना अपनी मां को समर्पित करते हुए सुना ई तथा आज के समय में परिवार में किस तरह से क्या-क्या बातें होती हैं और जनरेशन गैप किसी किस रूप में कहा जाए उसी से संबंधित एक गीत भी उन्होंने सुनाया।
अल्पाहार का कार्यक्रम भी इसी मध्य चलता रहा था। राष्ट्रगान के बाद इस परिचर्चा और काव्य गोष्ठी कार्यक्रम का समापन हुआ।
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