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पूर्व केन्द्रीय मंत्री आनन्द शर्मा ने कहा कि उ0प्र0 और देश के अंदर हाल के दिनों में परिस्थितियां गड़बड़ाई हैं


पूर्व केन्द्रीय मंत्री आनन्द शर्मा ने कहा कि उ0प्र0 और देश के अंदर हाल के दिनों में परिस्थितियां गड़बड़ाई हैं


लखनऊ I उ0प्र0 कंाग्रेस कमेटी मुख्यालय में आज प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए राज्यसभा में उपनेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री आनन्द शर्मा, सांसद ने कहा कि उ0प्र0 और देश के अंदर हाल के दिनों में परिस्थितियां गड़बड़ाई हैं और समाज में जो आशंकाएं और चिंता है। विशेष तौर पर बड़ी संख्या में देश के विश्वविद्यालयों में छात्रों, नौजवानों, अल्पसंख्यक समुदाय में, गरीब लोगों में और अपने दल की चिंता और सवाल, आपके माध्यम से रखना चाहता हूं। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री जी कल उ0प्र0 आये थे। देश के प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा की जाती है कि जिस राज्य से वह स्वयं भी सांसद हैं, अगर वहां स्थिति सबसे गंभीर हुई है और इतनी बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए हैं, परिवारों ने अपने बेटे खोये हैं, बहुत लोग जख्मी हुए हैं तो संवेदनशीलता होनी चाहिए थी। जहां प्रधानमंत्री जी नसीहत देते हैं अगर सही मायने में चिंतित और गंभीर हैं तो सांत्वना के लिए भी मलहम उन्हेें लगानी चाहिए थी। जो देश के अन्दर हालात बने हैं। देश के प्रधानमंत्री का दायित्व है उसके बारे में बताना चाहता हंू, देश के प्रधानमंत्री का यह दायित्व बनता है और लेागों का अधिकार है प्रजांतंत्र में अपनी आवाज उठाने का। और सरकार को उनकी यह जिम्मेदारी है चाहे वह प्रधानमंत्री हों, चाहे यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों, लोगों की आवाज को सुने, लोगों की आवाज को दबाएं नहीं। देश में यह हालात भाजपा की सरकार ने शासन और प्रशासन ने पैदा कर दी है। विपक्षी अगर कोई सवाल उठाता है आलोचना करता है, गलत नीति, निर्णय का विरोध करता है तो कह देते हैं कि यह तो देश के पक्ष में नहीं है। इनको स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि हम एक ऐसी विचारधारा और दल के हैं जिन्होंने देश की आजादी और देश के निर्माण के लिए कार्य किया है संघर्ष किया है। कुर्बानियां दी हैं, बलिदान दी है, शहादत दी है। हमको नरेन्द्र मोदी जी से और बीजेपी से कांग्रेस के किसी नेता को राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता और राष्ट्रभक्ति के लिए कोई प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है, प्रश्न चिन्ह हैं तो दूसरी तरफ हैं। अगर कोई देश के समाज को विभाजित करता है, समाज में तनाव और टकराव लाते वह राष्ट्र हित के खिलाफ कार्य करते हैं जो इस सरकार ने किया है अपने निर्णय से। क्या कारण है कि आपके और हमारे बीच में, देश में ऐसे हालात पैदा हुए हैं एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है आर्थिक मंदी है, गहरा आर्थिक संकट है, बाजार, व्यापार, रोजगार टूट चुके हैं। देश में कारखाने फैक्ट्रीज बड़ी संख्या में बंद हो गये हैं, लाखों में नहीं करोड़ों में। 4 करोड़ से ऊपर लोग पिछले 5 साल में रेाजगार खो दिए हैं, बेकार हो गये हैं। स्थिति से उबरने के लिए अभी कोई आसार नजर नहीं आता है। विश्व के बड़े संगठन ने भी, वल्र्ड बैंक ने भी चिंता जतई है। एक तरफ प्रधानमंत्री 5 ट्रिलियन की एकानामी बनाने की बात करते हैं उसके लिए 10 प्रतिशत कम से कम पांच साल तक देश की जीडीपी बढ़नी चाहिए थी परन्तु वह 4.5 पर है और जो इकानामी के बारे में जानते हैं वह मुझसे सहमत होंगे। जो क्रास वैल्यू एडीशन है वास्तविक दर है वह 3.2 है इस पर कोई चर्चा नहीं। पर देश में एक इतना बड़ा विवाद और तूफान सरकार ने खड़ा किया। देश की सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह लोगों को आश्वस्त करें कि यहां अगर सरकार स्वयं जानबूझकर चिंगारी छोड़ दे जिससे असुरक्षा और अस्थिरता का वातावरण देश के अन्दर है बहुत से लोग अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं। प्रश्न यह किया जाता है कि नागरिकता कानून में संशोधन का क्यों विरोध हो रहा है। हमारा सीधा प्रश्न है कि इसकी जरूरत क्या थी? भारत की आजादी के बाद संविधान में 6 मुख्य धाराएं हैं। आर्टिकल 5 से लेकर 11 तक, जो नागरिकता से सबंधित हैं। 1955 में नागरिकता का यह कानून बना और जैसे जैसे आवश्यकता हुई इसमें संशोधन भी हुआ, पर संविधान के मूलभूत स्वरूप से टकराने का कोई संशोधन नागरिकता और देश के किसी कानून में नहीं लाया गया, न संसद और न किसी सरकार केा कोई अधिकार है उस मामले में उस विषय में, कोई संदेह नहीं होना चाहिए। हमने सरकार से आग्रह किया था कि पुर्नविचार करें, जल्दबाजी न करें। संसद की स्टैंडिंग कमेटी को जांच परख के लिए भेज दें, ताकि कोई ऐसे हालात न बनें जिससे स्थिति को सुधारना मुश्किल हो जाए। पर इन्होने नहीं सुनी, क्या कारण है? यह प्रचार सरकार का, बीजेपी का बिल्कुल गलत है कि जो लोग तकलीफ में हैं, पर्सीक्यूटेड माइनारिटी जो हैं, उन्हें राहत देने के लिए हमने यह किया है। भारत की सरकार के पास 15 अगस्त 1947 के बाद पूर्ण अधिकार है कि किसी को भी ऐसी स्थिति में नागरिकता देने का, समय समय पर देश की सरकारों ने दी है। जब गोवा आजाद हुआ वहां के जितने नागरिक थे भारत की नागरिकता मिली। पांडिचेरी आजाद हुआ, दमन, दीव आजाद हुआ, सीलोन जो श्रीलंका है आज वहां के दसियों हजारों को नागरिकता मिली। कीनिया और युगाण्डा में जहां भारतीय मूल के लोग संकट में आये जो लोग हिन्दुस्तान वापस आना चाहते थे तो भारत की सरकार ने सबको नागरिकता दी, स्थान दिया कारोबार करते हैं, व्यापार करते हैं और सम्मान से रहते हैं। लेकिन कभी धर्म के आधार पर भेदभाव, भारत का संविधान अनुमति नहीं देता और किसी सरकार ने नहीं किया। जहां तक इन तीन देशों का प्रश्न है, क्यों बीजेपी यह नहीं बताती कि भारत की बड़ी सीमा म्यांमार से भी लगी है भारत के पड़ोंस में श्रीलंका भी है जहां से 50 हजार से ज्यादा रिफ्यूजी, शरणार्थी हिन्दुस्तान के अन्दर हैं उनके बारे में क्यों नहीं सोचते हैं और जो कानून है कोई रूकावट नहीं है जैसा हमने बताया। सरकार ने स्वयं कहा संसद में, पूरी गिनती बताई है, वह आंकड़ा कांग्रेस की तरफ से नहीं दे रहा हूं कि कुल मिलाकर ऐसे अभ्यर्थी होंगे, उनकी शयद 30 हजार संख्या बनेगी, जो लांग टर्म बीजा पर हिन्दुस्तान के अंदर हैं उसमें कुछ पाकिस्तान, बंगलादेश के भी है अफगास्तिान के भी लोग हैं श्रीलंका के भी लोग हैं। भारत की आजादी के 72 साल के बाद, हिन्दुस्तान के बंटवारे के 72 साल के बाद, जो गृह मंत्री जी ने कहा और सरकार कहती है कि कौन से लाखों करोड़ हैं जो विस्थापित हैं जो भारत की सीमाओं पर खड़ें हैं कि हमें नागरिकता दंे, जो कहा जा रहा है झूठ कहा जा रहा है, सच नहीं है। मुझे परहेज हैं इस शब्द का इस्तेमाल करने में, पर मजबूरी में कर रहा हूं। देश के पीएम नरेन्द्र मोदी जी, वह तो अभी कुछ दिन हुए जो दिल्ली में जनसभा हुई, उनका सच्चाई से पता नहीं क्यों झगड़ा रहता है हमेशा। कहते हैं कभी कोई बात ही नहीं हुई, कोई एनआरसी पर चर्चा नहीं हुई। हमने तो संसद में सुना, अखबारों में छपा है, टीवी ने दिखााय है गृह मंत्री जी दोनों सदनों में गरजे हैं। 9 बार, 2014 से लेकर आज तक सरकार ने यह कहा है और यह भी कहा है कि गनगणना होगी, जनगणना के बाद एनआरसी का रजिस्टर बनेगा, प्रावधान है क्या कानून में? हमारे समय में भी था नियम बाजपेयी जी के समय में बन गये थे एनपीआर और एनआरसी पर। उस पर कोई आपत्ति नही।ं आपत्ति इनकी नीयत और निशाने पर है। उस पर मुझे आपत्ति है। पूर्व प्रधानमंत्री मा0 मनमोहन सिंह जी के प्रधानमंत्रित्व काल में मैं कैबिनेट मंत्री था कैबिनेट ने फैसला किया था, 2010 में जनगणना की गयी, देश में किसी को क्या शंका हुई? किसी को कोई चिता हुई? कोई शोर हुआ, क्या हमारी बेटियां, बेटे सड़क पर निकलकर आये? क्या आपकी पुलिस केा हिन्दुस्तान में गोली चलानी पड़ी? पूरे देश में हो गया? सभ्य समाज है जिम्मेदारी से किये गये काम में देश की जनता का विश्वास बना रहता है। अगर आप विश्वास तोड़ कर दमन से कुछ करना चाहेंगे जहां लोगो को उनके अधिकारेां संे वंचित किया जाएगा जो संविधान में लोगों को अधिकार मिला है उसका विरोध होगा और विरोध चलता रहेगा जब तक न्याय नहीं होगा। हम देश की बात कह रहे हैं उन्होने कहा कि हम आज पढ़ रहे थे उ0प्र0 के अंदर, जहां जन्म और मरण का रजिस्टर में अंकित किया जाता है मुझे हैरानी हुई 38 प्रतिशत लोगों का नाम दर्ज नहीं है हमें हैरानी हुई 62 प्रतिशत जो बच्चे पैदा होते हैं और जो यहां की जनता है उनकी रजिस्टर में इन्ट्री है 38 प्रतिशत उ0प्र0 के लोग उससे बाहर है जहां तक मरण की बात है 43 प्रतिशत देश में बाहर हैं। बिहार की संख्या देख लें। कैबिनेट ने फैसला किया है पूरे देश में इस तरह का वातावरण है। उस समय यह निर्णय करना और यह कहना कि इसका केाई संबंध एनआसी से नहीं है क्या जल्दबाजी है। पूरे देश में आग लगाने के बाद जो लोग आशंकित हैं उनको दोष देना, उन पर दमन करना, और सुप्रीम कोर्ट में फैसला है 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी, संविधान पीठ सुनेगी कि क्यों सरकार ने यह निर्णय किया। साथ में कहते हैं कि उससे इसका मतलब नहीं है कौन से मानक रखे गये है? 2010 में जब देश की जनगणना हुई थी उससे 8 और बढ़ा दिये गये। कौन से आठ बढ़े हैं पहले तो माता पिता के जन्मतिथि जन्मस्थान, मैं काफी चाहता हूं जो आजादी के बाद पैदा हुए लोग हैं हमारी पीढ़ी के, बुहुत लोगों को नहीं पता गांव में कि उनके माता पिता की जन्मतिथि क्या है। मैं शहरों की बात नहीं करता, बात कर रहे हैं जो लोग गरीब हैं जो पढ़े लिखे नहीं थे जिनके मां-बाप कभी विश्वविद्यालय नहीं गये, यह वास्तविकता है देश की। ढूंढकर लाइये दस्तावेज। माता-पिता को यह दुनिया को छोड़े हुए वर्षों हो गए पूछोगे तो किससे पूछोगें। आप लोग पासपोर्ट लेकर आइये, देश के 4 प्रतिशत लोगों के पास भारत में पासपोर्ट है 96 प्रतिशत के हिन्दुस्तानियों के पास पासपोर्ट नहीं है यह भी एक वास्तविकता है मोबाइल नम्बर लाइये मान लीजिए मोबाइल नंबर सबके पास है तो उसमें क्या मतलब? आज का पता नहीं, दो पते बताईये, स्थाई पता बताइये? ये कागज लाइय,े पैन कार्ड दीजिए, आधार कार्ड दीजिए आखिर यही काम करते रहेंगे कि परिवार देंखेगे, कारोबार देखेंगे व्यवसाय को देखेंगे। इससे सबसे बड़ी चोट हिन्दुस्तान के गरीब लोगों पर पड़ेगी। कोई वह धर्म जाति से संबंधित नहीं है देश के बरीब लोग। किसी के पास अगर सम्पत्ति नहीं है भूमि हीन है तो वह कौन सी सम्पत्ति का कागज देगे। कोई बच्चे स्कूल कालेज नहीं जा पाये तो किस एजूकेशन का सर्टिफिकिट देंगे, जिनका रजिस्टर आफ बर्थ्स में नाम दर्ज ही नहीं है जो कि यूपी में 38 प्रतिश है जो दर्ज ही नहीं है तो वह कौन सा सर्टिफिकेट देंगें? कौन सा पासपोर्ट देगें, यह हमारी आपत्ति का आधार है। हम इसमें राजनति नहीं कर रहे हैं स्पष्ट करना चाहते हैं। और जहां तक संविधान से टकराव की बात है। आर्टिकल 14 से सीधा टकराव था, जो देश के नागरिकों को अधिकार देता है आश्वस्त करता है कि कानून सबके लिए बराबर होगा और कानून की सुरक्षा भारत के हर नागरिक केा बराबर से मिलेगी। इस देश में जो भी होगा। संविधान निर्माताओं ने नागरिकता का इसे आधार नहीं बनाया। भाजपा कहती है कि वह हमारी संस्किृति को समझते हैं, वह तो सबसे प्रखर हैं प्रहरी बन गये हैं, हिन्दुस्तान के भी, हमारे भारत की संस्कृति के, हिन्दू समाज की संस्कृत के, जो इनके विचाराधारा से अलग है जो वह 60 प्रतिशत भारत के मतदाता है जिन्होने वोट नहीं दिया इनको, वह सारे के सारे देश द्रोही हो गए? गैर भारतीय हो गये? उनको देश की संस्कृति सभ्यता की कोई जानकारी नहंी है? मुझे आपत्ति है इस बात पर। प्रधानमंत्री जी देश के बाहर जाते हैं तो देश की आलग-अलग भाषाओं में बोलते हैं। मंच से नारा लगाया, बीजीपी की रैली में, विविधता में एकता, प्रधानमंत्री जी इस देश की विविधता को ग्रहण करिए। नारे से और शब्दों से नहीं, मन से सोच से कार्य से। अगर आप करेंगे, तो तभी लोग उस पर विश्वास करेगे बाहर आप कहते है। वसुधैव कुटुम्बकम इस देश की बहुत बड़ी सोच थी। अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतिसाम उदारचरितानाम तु वधुधैव कुटुम्बकम, भारत इसी संस्कृति पर चलता है। हमने संसद में कहा था कि मैंने पिछले 126 साल के चार उदाहरण दिये थ। 9-11 के। एक तो अमरीका में हुई 2002 में आंतकवादी, जब हजारों लोग मारे गये, दूसरा जो हिंसा से भरा था वह 1973 में चिली में हुआ, फौज ने कब्जा कर लिया 27 हजार लोग कत्ल कर दिये गये। दो अच्छे काम के लिए हुए थे 1906 में जोहन्सर्ग में गांधी जी ने अफ्रीका में आन्दोलन किया था। 9 सितम्बर 1893 शिकागो में स्वामी विवेकानन्द ने क्या कहा था मैं उस देश से आता हू उस धर्म से आता है हूं जिसमें विश्व से कहीं से भी आये हुए शरणार्थियों को शरण दी है अमरीका उसको याद रख सकता है उन्होने दुबारा अपना टाउन हाल खुलवा दिया जहां उन्होने अपना भाषण दिया था और वल्र्ड रेलीजन कांफे्रन्स में बोले थे वह। जिसकी चार दिशा में सीढ़िया हैं, एक पर नहीं चारों सीढ़ियों पर हर सीढ़ी पर स्वामी जी के उस महान सम्बोधन की हैं एक-एक पंिक्त लिखी है। भारतीय संस्कृति का भी नाम लेते हैं या तो स्वामी जी ने गलत कहा था। अगर स्वामी जी ने कहा था तो अगर आप स्वामी विवेकानन्द जी का सम्मान करते हैं तो इसको वापस लीजिए। अम्बेडकर जी का आप संम्मान करते हैं उन्होने ड्राफ्टिंग कमेटी की अध्यक्षता की थी। एक कमेटी की अध्यक्षता सरदार पटेल करते थे जो नागरिकता से जुड़े विषयों पर थी। संविधान की सब कमेटी की अध्यक्षता पं0 जाहर लाल नेहरू करते थे क्या सभी गलत थे? आज तक जो देश में हुआ वह गलत? अब सबको उलझा दिया है न। बच्चे रोजगार मांगने की जगह गोली लाठी खा रहे हैं। जो कारोबार, व्यापार, रूपया टूट गया, अब वह सवाल देश में खत्म हो गया। अब तो कहा जाता है कि आज कहां आंसू गैस, कहां लाठी चली, कहां आज गोली चली आज, कहां लोग मरे। जाइये हिन्दुस्तान के तमाम उन पर्यटन स्थलों पर जहां सारी बुकिंग विदेशी पर्यटकों की कैंसिल हो गयी है कि हिन्दुस्तान मत जाओ। 53 देशेां ने एडवाइजरी जारी कर दी। यूं ही बुरी हालत थी हमारी इकानामी की एक और चोट पहुंचा। हमारी खुली चुनौती रही है प्रधानमंत्री जी, एक तरफी बात मत करा,े मन की बात। लोगों की और देश के मन की बात सुनेा। और अगर आपको चर्चा करनी है इमानदारी स,े ताकि लोगों को गुमराह न किया जाए, तो किसी मंच से स्थान, समय तय कर लें, हम तैयार हैं। यह हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं। और जो लोग त्रस्त हैं जो हताश हैं हम उनको भी एक बात कहना चाहते हैं कि इस देश में न्याय होगा, न्याय के लिए संघर्ष भी होगा और न्याय के लिए आवाज भी उठेगी। उसको कोई हमको रोक नहीं सकता। हम पर आरोप मत लगाइए, हमारा यह कर्तव्य बनता है राष्ट्र के प्रति और भारतवासियों के प्रति। वह अपने आपको असहय मत समझें, देश साथ खड़ा हुआ है। हमारे बेटे, बेटियां खड़े हो गये विश्वविद्यालयों में। जहां इनका मुख्यालय है, इनके संघ का, नागपुर में ढाई लाख का जुजुस निकला, ये सारे लोग कौन हैं? यह देशवासी नहीं हैं? यह हर धर्म के हैं यह भी प्रचार बन्द होना चाहिए जो यह लकीर खींचना चाहते थे। आवश्यकता नहीं थी अकारण किया। लोगों का ध्यान हटा दिया। आप अपने बेटा बेटी का क्या भविष्य होगा भूल गये। कारोबार बंद है खुलेगा या नही,ं कारखाना खुलेगा या नहीं, रोजगार मिलेगा या नहीं। वह बातें अब नहीं कर रहे हैं कहते हैं जनगणना करेंगे, कृपा करिये, नये मानक नहीं लगाइये इसे हटाइये, जो मानक पहले थे उसी पर जनगणना होनी चाहिए, जो डा0 मनमोहन सिंह जी और हमारी कैबिनेट के थे। इसमें नई बातें जोड़ने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होने कहा कि आज किसी राज्य में 38 प्रतिशत लोगों के पास कागज नहीं होगा और देश में तो करोड़ों करोड़ लोग हैं कहते हैं डिटेंशन सेंटर नहीं बन रहे। सरकार ने संसद में बताया कि कहां कहां बन रहे हैं संैकड़ों करोड़ रूपये उसके लिए दिया गया। जिस धरती ने भगवान बुद्ध, महावीर का, महात्मा गांधी का संदेश, इस पूरी दुनिया को सुनाया हो, स्वामी विवेकानंद जी की चर्चा की, इक्कसवीं सदी खत्म होते हुए वहां पर हिन्दुस्तान यह स्वीकार नहीं करेगा। क्योंकि पूरे समाज को तकलीफ होगी। इससे पहले देश में बड़े पैमाने पर यह दोहराई जाए जो एक तकलीफ नोंटबन्दी में थी जो लोग कतारों में अपने पैसे के लिए भीख मांगने जैसे खड़ा कर दिये गये थे वैसी स्थिति भारत में नहीं आनी चाहिए। जिनके पास कागज नहीं है, जमीन नहीं है, पैसा नहीं है, वह इससे बर्बाद हो जायेंगे और उनकी लड़ाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लड़ेगी।


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