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भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों का ही दुष्परिणाम है कि मंहगाई आसमान से नीचे आने का नाम नहीं ले रही है -- अखिलेश यादव 

भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों का ही दुष्परिणाम है कि मंहगाई आसमान से नीचे आने का नाम नहीं ले रही है -- अखिलेश यादव 


लखनऊ I समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों का ही दुष्परिणाम है कि मंहगाई आसमान से नीचे आने का नाम नहीं ले रही है। रोजमर्रा घरेलू प्रयोग आने वाली वस्तुओं से लेकर किसानों के खेती में इस्तेमाल होने वाली खाद, बीज, डीजल, बिजली आदि के रेटों में बेतहाशा वृद्धि ने किसानों के सामने आर्थिक संकट पैदा कर दिया है। खाना-पीना दूभर हो गया है। गृहणियों की व्यथा अलग है। आटा, तेल, सब्जियों सहित प्याज के मूल्यों में वृद्धि जारी है। पट्रोल-डीजल सहित घरेलू उपयोग के गैस सिलेण्डरों में वृद्धि हो गई है।


      भाजपा सरकार जन समस्याओं को सुलझाने के बजाय जीवन को जटिल बनाने में लगी है। लगता है कि भाजपा का वास्तविक एजेण्डा यही है। जनता चैन से न बैठ पाये। भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियां जनता के लिए अभिशाप बन कर आयी है।


       भाजपा सरकार की गलत आर्थिक नीतियों एवं नोटबंदी और जीएसटी के कारण नौजवानों के भविष्य के सामने अंधेरी सुरंग है। दूर-दूर तक कुछ नहीं दिखता। न रोजगार न नौकारी की सम्भावना है। छोटे कारोबार कुटीर लघु उद्योगधंधो में उत्पादन से लेकर रोजगार में भारी गिरावट आ गयी है। जीडीपी के आंकड़े तो और भी डरावने है। जनसराकारों के असली मुद्दों से ध्यान हटा कर अनावश्यक सवालों के जरिये जनता को परेशानी में फंसाना, भाजपा अपनी उपलब्धि समझती है।
       भाजपा सरकार जिसे अपनी सफलता समझने लगी है उससे जनता दुःखी परेशान और आक्रोशित है। उत्तर प्रदेश की स्थिति तो बहुत खराब है। हालात यहां तक भयावह है कि किसानों नौजवानों छोटे व्यापारियों एवं दुकानदारों का भाजपा सरकार ने निराश ही किया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार से जनता कराह उठी है। न जीवन, न संपत्ति और न सम्मान सुरक्षित है भाजपा सरकार में।


       सरकार की यह नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी होती है कि उसके किसी निर्णय से जनता को दुख न पहुंचे, पर भाजपा इससे कोसों दूर चली गयी है। भाजपा सरकार की नीतियों के कारण उत्तर प्रदेश में जन अभिशप्त हो चला है जिसे भोगने को जनता मजबूर है। ढाई वर्ष में ही भाजपा सरकार ने जनता से अपने चाल-चरित्र और चेहरा का जो नया परिचय कराया है, वैसी उम्मीद जनता को कभी नहीं रही, लोकतंत्र में सरकारों का यह नया अनुभव है जो खतरनाक है।


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