-आध्यात्मिक लेख
आत्मा अजर अमर है! मृत्यु के बाद का जीवन आनन्द एवं हर्षदायी होता है!
(1) मृत्यु के बाद शरीर मिट्टी में तथा आत्मा ईश्वरीय लोक में चली जाती है :विश्व के सभी महान धर्म हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम, जैन, पारसी, सिख, बहाई हमें बताते हैं कि आत्मा और शरीर में एक अत्यन्त विशेष सम्बन्ध होता है इन दोनों के मिलने से ही मानव की संरचना होती है। आत्मा और शरीर का यह सम्बन्ध केवल एक नाशवान जीवन की अवधि तक ही सीमित रहता है। जब यह समाप्त हो जाता है तो दोनों अपने-अपने उद्गम स्थान को वापस चले जाते हैं, शरीर मिट्टी में मिल जाता है और आत्मा ईश्वर के आध्यात्मिक लोक में। आत्मा आध्यात्मिक लोक से निकली हुई, ईश्वर की छवि से सृजित होकर दिव्य गुणों और स्वर्गिक विशेषताओं को धारण करने की क्षमता लिए हुए शरीर से अलग होने के बाद शाश्वत रूप से प्रगति की ओर बढ़ती रहती है। (2) सृजनहार से पुनर्मिलन दुःख या डर का नहीं वरन् आनन्द के क्षण है :
(2) सृजनहार से पुनर्मिलन दुःख या डर का नहीं वरन् आनन्द के क्षण है :हम आत्मा को एक पक्षी के रूप में तथा मानव शरीर को एक पिजड़े के समान मान सकते है। इस संसार में रहते हुए हम शारीरिक सीमाओं में बंधे रहते हैं। हमें बीमारियों तथा दुःखों को सहना पड़ता है। मृत्यु के समय जब यह मानव शरीर रूपी पिजड़ा टूट जाता हैतब आत्मा मानव शरीर की सीमाओं से स्वतंत्र होकर प्रभु के संसार की ओर उड़ जाती है। क्या अपने सृजनहार से पुनर्मिलन के इस विचार के पीछे किसी प्रकार का दुःख या डर है? इसलिए हमें मृत्यु से डरना नही चाहिए। मृत्यु एक शाश्वत एवं सुन्दर सत्य है जिसका सामना प्रत्येक को करना है।
(3) जीवन परमात्मा का प्रसाद तथा मृत्यु परमात्मा का आमंत्रण है :मृत्यु के बाद जीवन का यह विचार स्वयं में अत्यन्त अटपटा लगता है। कुछ लोगों को यह डरावना लगता है। कुछ को यह नामुमकिन लगता है। कुछ लोग शरीर के जीवन को ही शरीर के अन्त होने पर पूरी मृत्यु को पा लेते है ऐसी ही उनकी समझ हैदेखा जाए तो यह विचार कि हम शरीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहेंगे। एक रोमांचकारी विचार है इस सम्बन्ध में धर्म के प्रणेताओं व विद्वानों ने अपने दर्शन को इस प्रकार प्रकट किया है उदाहरण के लिए गीता के अनुसार :
(4) मुत्यु चिन्तनीय विषय नहीं वरन् आत्मा का चोला बदलना है :___ श्रीकृष्ण सखा अर्जुन के भावुक मन का अन्तईन्द भलीभाँति समझ रहे थे किन्तु वे अधीर मन को साधना भी जानते थे। वह गीता में कहते हैं – 'पार्थ ! भयभीत न हो। मुत्यु से भयभीत न हो। तू बड़ी भ्रान्ति में पड़ा हुआ है। मृत्यु से कैसा भय। मृत्यु है क्या? जिस प्रकार शरीर को बचपन, यौवन और वृद्धावस्था के परिवर्तन एक के बाद एक भोगने पड़ते हैं उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर रूपी वस्त्र उतारकर नए शरीर के वस्त्रधारण कर लेती है। मृत्यु कोई चिन्तनीय विषय नहीं है, पार्थ यह तो आत्मा का चोला बदलना मात्र है। एक शरीर को छोड़कर जब आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश करती है तब उसे हम मृत्यु कहते हैं। मृत्यु को देहान्त भी कहते हैं क्योंकि मृत्यु केवल देह अथवा ऊपरी आवरण अथवा चोला का ही अन्त करती हैं, आत्मा का नहीं।
(5) आत्मा अजर अमर है :नैनं छिन्दन्ति शास्त्रिाणि नैनं दहति पावकः । न चैन क्लेदयन्तापो न शोषयति मारूतः।। कुन्तीपुत्र ! इसे न शस्त्र भेद सकते हैं न अग्नि जला सकती है, न ही इसे वायु सुखा सकती है, न ही इसे दुःख सुख क्लेश आदि प्रभावित कर सकते हैं। अतः तू भली-भाँति समझ ले कि आत्मा अमर और अवध्य है। हिन्दू मरने के बाद भी सालो-साल अपने पूर्वजों को याद रखते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं। एक तरह से यह हमारी इस धारणा की ही अभिव्यक्ति है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, मात्र नश्वर शरीर का समापन है।
(6) इस्लाम धर्म जीवन के बाद मृत्यु के बारे में क्या कहता है :इस्लाम धर्म में पूर्वजों के लिए कोई विशिष्ट पखवाड़ा तो निर्धारित नहीं है लेकिन दो अवसरों पर पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए फातेहा पढ़ने को कहा गया है। एक अवसर है पूर्वजों की बरसी या मृत्यु की तिथि पर साल में एक बार। इस दिन हैसियत के मुताबिक लोगों को भोजन कराया और दिवंगत की कब्र पर उसकी शांति के लिए फातेहा पढ़ा जाता है। दूसरा अवसर है- शब-ए-बारात का। इस्लामिक कैलेंडर के शाबान महीने की 13 या 14 तारीख को होने वाले इस पर्व पर दिवंगतों की रूह की शांति के लिए कब्रिस्तानों में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए फातेहा पढ़ते हैं। मान्यता है कि इस दिन दिवंगतों की रूह पृथ्वी पर आती है। इस दिन गरीबों को भोजन कराने की परंपरा भी है
(7) सिख धर्म जीवन के बाद मृत्यु के बारे में क्या कहता है :सिखों में मान्यता है कि ईश्वर अजन्मा और अविनाशी है। मृत्यु के बाद आत्मा परम ज्योति में विलीन हो जाती है। इसीलिए सिखों में पितृ पक्ष जैसी परंपरा नहीं है। अंतिम संस्कार के बाद यह मान लिया जाता है कि दिवंगत की आत्मा समुद्र में वर्षा जल की तरह विलीन हो चुकी है
(8) पारसी धर्म जीवन के बाद मृत्यु के बारे में क्या कहता है :पारसी समुदाय के लोग दिवंगत लोगों का अंतिम संस्कार करने के बाद शांति पाठ में यह दोहराते है कि हे सर्वशक्तिमान, नश्वर जीव को अपनी संपत्ति मानकर इसे शरण दीजिए। बाद में पूर्वजों की याद में शांति पाठ और जीव से प्रेम और भोजन आदि की मदद करते हैं। लेकिन पारसी इस बात को कहते हैं कि नश्वर शरीर का अंत होने के बाद उसका अस्तित्व नहीं रहता है।
बहाई धर्म संस्थापक बहाउल्लाह ने मृत्यु के बाद जीवन के बारे में कहा है कि मृत्यु सुख का सन्देशवाहक है फिर तू शोक क्यों करता हैआत्मा की उत्पत्ति ईश्वर के आध्यात्मिक लोक से हुई है। यह भौतिक दुनिया और इसके तत्वों से उच्च है। व्यक्ति के जीवन का प्रारम्भ तब होता है जब माँ के गर्भ धारण करने के समय भ्रूण के माध्यम से इन आध्यात्मिक लोकों से आई आत्मा का संयोग होता हैलेकिन यह सम्बन्ध भौतिक नहीं होता है, आत्मा न तो शरीर में प्रवेश करती है और न ही इसे छोड़ती है और न ही अपने लिए कोई जगह घेरती है। आत्मा भौतिक संसार की वस्तु नहीं है, इसका शरीर के साथ सम्बन्ध वैसा ही होता है जैसा कि प्रकाश का किसी दर्पण के साथ होता है जो उसे प्रतिबिम्बित करता है। दर्पण में जो प्रकाश नजर आता है वह उस दर्पण के अन्दर न होकर बाहर से आता है। इसी तरह आत्मा शरीर के अन्दर नहीं होती
(10) आत्मा ईश्वर के सुन्दर साम्राज्य से आती है :बहाई धर्म के पवित्र लेखों के अनुसार जब एक व्यक्ति मर जाता है तो वह अपने सृजनहार के पास वापिस लौट जाता है तथा उसका अपने प्यारे प्रभु से पुनर्मिलन हो जाता है। मृत्यु के पश्चात इंसान की आत्मा इस संसार के दुःखों से आजाद होकर जैसा कि बहाई मानते है कि ईश्वर के सुन्दर साम्राज्य में चली जाती है
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