मातृ दिवस 12 मई 2019 पर विशेष लेख --जन्नत माँ के कदमों के नीचे है।
एक माँ के रूप में नारी का हृदय बहुत कोमल होता है। वह सभी की खुशहाली तथा सुरक्षित जीवन की कामना करती है। माँ, यह वह शब्द हैजो किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। ईश्वर सभी जगह उपस्थित नहीं रह सकता इसीलिए उसने धरती पर माँ का स्वरूप विकसित किया, जो हर परेशानी और हर मुश्किल घड़ी में अपने बच्चों का साथ देती है, उन्हें दुनियाँ के हर कष्टों से बचाती है। बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले वह मॉ बोलना ही सीखता है। माँ ही उसकी सबसे पहली दोस्त बनती है, जो उसके साथ खेलती भी है और उसे सही-गलत जैसी बातों से भी अवगत करवाती है। माँ के रूप में बच्चे को निःस्वार्थ प्रेम और त्याग की प्राप्ति होती है तो वहीं माँ बनना किसी भी महिला को पूर्णता प्रदान करता है। माता बच्चे की प्रथम पाठशाला है'महिला' शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'मही' (पृथ्वी) को हिला देने वाली महिला। विश्व की वर्तमान उथल-पुथल शान्ति से ओतप्रोत नारी युग के आगमन के पूर्व की बैचेनी है।
मोहम्मद साहब ने कहा है कि अगर धरती पर कहीं जन्नत है तो वह माँ के कदमों के नीचे है। माँ, जिसे प्रेम और त्याग की मूरत कहा जाता है। महिला का स्वरूप माँ का हो या बहन का, पत्नी का स्वरूप हो या बेटी का। महिला के चारों स्वरूप ही पुरूष को सम्बल प्रदान करते हैं। पुरूष को पूर्णता का दर्जा प्रदान करने के लिए महिला के इन चारों स्वरूपों का सम्बल आवश्यक है। इतनी सबल व सशक्त महिला को अबला कहना नारी जाति का अपमान है। माँ तो सदैव अपने बच्चों पर जीवन की सारी पूँजी लुटाने के लिए लालायित रहती है। माँ ना सिर्फ अपने बच्चों को दुनियाँ की बुराइयों से बचाती है बल्कि वह अपने बच्चे की सबसे बड़ी प्रेरणास्त्रोत भी होती है। संसार की किसी भी महिला को देख लीजिए जितना त्याग और समर्पण वह अपनी संतान के लिए करती हैं शायद कभी कोई इस बारे में सोच भी नहीं सकता। आज के भौतिकवादी युग में केवल माँ ही है जो बिना किसी अपेक्षा या लालच के अपनी संतान को भरपूर प्रेम देती है। मॉ, जिसे प्रेम और त्याग की मूरत कहा जाता है, मानव के लिए ईश्वरीय वरदान से कम नहीं है। इसलिए माँ की महत्ता को दरकिनार कर कोई भी व्यक्ति न तो जीवन में सफल हो सकता है और न ही आत्म संतुष्टि ही पा सकता है।
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