31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख
भारतीय संस्कृति के आदर्श "वसुधैव कुटुम्बकम्' के विचार में हैविश्व की समस्याओं का समाधान
भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता 'वसुधैव कुटुम्बकम' का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्फर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक कियादेश-विदेश में इस महान नारी की जयन्ती प्रतिवर्ष बड़े ही उल्लासपूर्ण तथा प्रेरणादायी वातावरण में मनायी जाती है। इस महान नारी की जयन्ती पर हमें उन्हीं की तरह अपने हृदय को विशाल करके उदारतापूर्वक सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का संकल्प लेना चाहिए। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर 'वसुधैव कुटुम्बकम्' दिवस के रूप में मनाने के लिए प्रस्ताव पारित करें। वह भारत की ऐसी प्रथम नारी शासिका थी जिन्होंने अपनी प्रजा को अपनी संतानों की तरह लोकमाता के रूप में संरक्षण दिया। साथ ही अत्यन्त ही लोक कल्याणकारी कानून बनाये जिसमें सभी का हित सुरक्षित था। पड़ोसी राजाओं के साथ उन्होंने मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित कियेवे युद्ध के पक्ष में कभी भी नहीं रही, वरन वे कानून आधारित न्यायपूर्ण राज संचालन पर विश्वास करती थी। आज भी महारानी के सम्बोधन की बजाय वह देश में लोकमाता या देवी के रूप में सबके हृदय में श्रद्धापूर्वक वास करती हैं। उन्होंने एक महारानी होते हुए भी एक सादगीपूर्ण, शुद्ध, दयालु तथा ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय जीवन पर्यन्त धारण किये रहने की मिसाल प्रस्तुत की।
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