अपने अपने विचार -------
सावी न्यूज लखनऊ। आज आधुनिक समय में यह कहना कतई गलत नही होगा कि इस बदलते सामाजिक परिवेश में भारतीयों को आधुनिक शिक्षा व रहन सहन ने विश्वव्यापी बना दिया इन युवतियों में उचित-अनुचित में भेद कर पाना सम्भव नहीं है। उचित ज्ञान व सही चिन्तन के आभाव में अधिकांश युवतियाँ दुनिया की चकाचौंध में खोकर पाश्चात्य शैली ग्रहण कर रही हैं। आज समय तेजी से बदलता जा रहा है आर्थिक युग है आज की शान-ओ-शौकत को देखते हुए नई पीढ़ी की युवतियाँ कुछ भी करने को तैयार है। काम के बदले दाम चाहिए यहां तक कि वे अपना शरीर सौंपने में भी कोई संकोच नहीं करती उन्हें कोई करोड़पति ग्राहक चाहिए। आज ऐसी लड़कियों की कमी नहीं है जो एकाएक फर्श से अर्श तक पहुंचना चाहती हैं। इसके लिए 22-25 वर्ष की बालाएं अपना शरीर कई-कई रईसों के हाथों सौंपती रहती हैं। उनका एक ही उद्देश्य है कि उन्हें धन-दौलत, बंगला, गाड़ी, शेहरत के लिए अधेड़ हो चुके बड़े-बड़े सेठों, अधिकारियों, उद्योगपतियों को पटाकर अपने जाल में फंसाती ये बालाएं प्रायः तलाकशुदा मर्द, बिदुर को या फिर आशिक मिजाज रईसों को अपना जीवन साथी बनाती है।
कभी-कभी देखने में आता हैकि 22-25 वर्ष की बाला ने अपने से दो गुना से अधिक आयु के मर्द के साथ विवाह करद लेती हैं कयोंकि वे जल्द ही अधिक से अधिक पैसा बनाने के लिये हाई सोसायटी में जाने का रास्ता खोजती है। कुछ इन बालाओं से जानकारी चाही गई कि तुम्हे इस अधेड़ उम्र के व्यक्ति से शादी करके क्या मिलेगा तब वे इतरा कर कहती हैं पैसा और शोहरत तो उनसे जानना चाहा कि तुम्हारी उम्र में इतना अन्तर है तो कैसा दाम्पत्य जीवन रहेगा कब तक तुम पर सिंदूर सजेगा तो वे फिर आगे कहती है ये सब तो धन दौलत के लिए किया है यह 4-6 वर्षों में मर ही जायेगा यह तो कब्र में पैर लटकाये बैठे हैं इनके मरने के बाद ही किसी नौजवान जीवन साथी के साथ जीवन व्यतीत करेगे। इस तरह अधेड़ पति की मृत्यु के बाद करोड़ों कि मालकिन बन जाती हैं ऐसी युवतियां। हमारे भारत की सभ्यता एवं संस्कृति है कि एक पति व एक पत्नी ही होनी चाहिए। दाम्पत्य जीवन व पति-पत्नी के रिश्ते ही हमे सामाजिक बनाते हैं। इन सम्बन्धों में मधुरता तभी तक बनी रहती है जब तक हम इन रिश्तों को पूरी इमानदारी से निभाते हैं विश्व में भारत को छोड़ कर कोई ऐसा देश नहीं है जहां पति-पत्नी इतनी सत्य निष्ठा से दाम्पत्य जीवन गुजारते है। विश्व में कोई व्यक्ति नहीं है जिसका किसी से कोई रिश्ता न हो। आज पति-पत्नी के रिश्तों में अन्तर आता जा रहा है आज पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते-बन्धन विश्वास पर टिके हैं। उन सम्बन्धों के स्थान पर फ्रेंडशिप ने ले लिया है यह फ्रेंडशिप इतने खुले दिमाग, तन और मन से की जाती है कि इसमें यौन सम्बन्धों को मात्र मनोरंजन का साधन मान लिया गया है।
नारी की अस्मिता, लज्जा, शीलरक्षा, लोक लाज जैसे शब्दकोष में नहीं हैं ये शब्द उनके अनुसार किताबों में ही रह गये है। वर्षों से पति-पत्नी के अन्तरंग सम्बन्ध विवाद का विषय रहा है कि सेक्स के ये अन्तरंग सम्बन्ध एक आवश्यक आवश्यकता है या नहीं अधिकांश लोग इस रिश्ते को सेक्स से अधिक भावनात्मक लगाव को विवाह के लिए जरूरी तत्व मानते है बिना भावनात्मक रिश्ते के अन्तरंग सम्बन्ध बनाने में मानसिक संतुष्टि नही प्राप्त होती है। पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित नव युवतियां इस रिश्ते को केवल मनोरंजन का साधन मानती हैं इसीलिये वे अपने दोस्त बदलती रहतीं है आज समाज के बदलते रूख ने जहां सेक्स के लिये विवाह के बन्धन से दूर रहकर भी अपनी एक अलग दुनिया तलाश ली है। यहां यह मामला गम्भीर हो गया है कि क्या सेक्स के लिए विवाह करना आवश्यक है या फिर बिना विवाह के या किसी अन्य तरीके से सम्बन्ध को वैसे ही जीवन्त रखा जा सकता है। रिश्तों की शुरूवात कब और कहां से हुई यह कहना तो कठिन है किन्तु मानव समाज में रहने वाला प्रत्येक प्राणी बिना रिश्तों के बन्धन में नहीं रह सकता है ये रिश्ते ही प्राणी को समाज में रहने को मजबूर करते हैं। प्रत्येक रिश्ते का अपने अपने दायित्व होता है।
आज समय बदल गया है समय की कैसी विडम्बना है कि जिस नारी को पूज्यनीय व आदरणीया कहा जाता हैवही नारी अपने मनोरंजन एवं आर्थिक उन्नति एवं सम्पन्नता के चक्कर में पड़कर अपना शोषण स्वयं करवाने को तैयार है। इन्हें अपने शरीर का शोषण कराने में कोई संकोच-एतराज नहीं है। वे असामाजिक तत्वों एवं धनाढ्य सेठों के हाथों स्वयं को सौंप रही हैं जो उनके सतीत्व का चीर हरण करते रहते हैं वे नव युवतियों को वासना के दलदल में फसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं नवातुर नवयुतियों को अपने मकड़जाल में फंसाते हैं और फिर वह युवती क्षणिक सुख की गहरी खाई में समाती चली जाती है। दुखद तो यह है कि ऐसी युवतियों से सम्बन्ध रखने वाली युवतियां और महिलाए भी उसके द्वारा दिखाये गये दिवास्वप्न में फंस जाती हैं और फिर चलता है क्रमिक शोषण। वर्तमान में नवयुवतियां भारतीय परम्परा के नैतिक मूल्यों को तिलांजली देने पर उतारू है, इससे लगता है कि भारत एकाएक भयानक कल की ओर बढ़ रहा है। जिन मूल्यों के आधार पर मर्यादित आचरण से भारत ने विश्व में अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन किया है, उस आचरण को छोड़ कर यदि भारत का भविष्य पाश्चात्य विकृति आचरण पेश करती हुई भोग विलासमयी संस्कृति का अनुयायी बना गया तो संदेह नहीं जब भारत अपना उज्जवल भविष्य इन युवतियों के आचरण के कारण वासना के घिनौने दलदल में फंसकर अपना अस्तित्व को समाप्त कर देवेगा। आज न जाने कितनी लड़कियां पैसे और ऐशोआराम व शान के चक्कर में रईशों की दूसरी तीसरी या गुमनाम बीबी बनने को आतुर रहती है।
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