- सामाजिक पृष्ठ
सावी न्यूज लखनऊ। विश्व के किसी भी एक बच्चे की शक्ल और उसके अंगूठे की छाप किसी दूसरे बच्चे से कभी नहीं मिलती है। ईश्वर ने प्रत्येक बच्चे को अलग एवं विशिष्ट बनाया है। ये बच्चे अपनी अलग-अलग प्रतिभा एवं विशे तिा के कारण अपने चुने हुए कार्य क्षेत्र में सबसे सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम इनके अंदर छिपी हुई ईश्वरीय प्रतिभा एवं विशिष्ट गुणों को विकसित करें और उन्हें अपने चुने हुए क्षेत्र में जाने के लिए सर्वश्रेष्ठ शिक्षा व वातावरण उपलब्ध करायें। इसके लिए हमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा तो उपलब्ध करानी ही है इसके साथ ही हमें उन्हें ईश्वर की शिक्षाओं से भी जोड़ना होगा। उनके व्यक्तित्व में मानवीय गुणों को भरना होगा। ईश्वर से जुड़कर वे पूरी शिद्दत के साथ सारी मानवजाति की सेवा के लिए प्रयास करने पर अवश्य ही सफल होगे। उनके रास्ते में कठिनाई आ सकती है किन्तु यदि वे ईश्वर से जुड़े हुए हैं और आप अपनी पूरी नि ठा एवं ईमानदारी के साथ प्रयास कर रहे हैं तो वे अवश्य ही सफल होगे। परमात्मा से जुड़ने पर बच्चे महसूस करेंगे कि परमात्मा उनकी रक्षा के लिए अपने सैनिकों को उनकी मदद के लिए भेज देता हैबच्चे ही संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के माध्यम से सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना कर सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति एवं शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मंडेला ने कहा भी है कि 'शिक्षा ही वह शक्तिशाली हथियार है जिसके माध्यम से सारे विश्व की सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाया जा सकता हैइस प्रकार सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ ढांचे में ढलकर बच्चे ही विश्व में सामाजिक परिवर्तन ला सकते हैं। सभी बच्चे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना चाहते हैं। कोई भी बालक बम का निर्माण नहीं चाहता है। हमारा शरीर भौतिक है। ऐसे में अगर हमारे बच्चों का चिंतन भी भौतिक हो गया तो वे पशु बन जायेंगे। इसलिए हमे अपने बच्चों के चिंतन को आध्यात्मिक बनाना है। तभी वे संतुलित प्राणी बन पायेंगे। तभी वे ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बन सकेंगे। तभी वे विश्व का प्रकाश बन सकेंगे। इसके लिए हमें अपने बच्चों को भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्रदान करके उन्हें गुड और स्मार्ट दोनों बनाना है।
बच्चों को अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं निर्धारित करना चाहिए। किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में विचारों का सबसे बड़ा योगदान होता है। किसी भी व्यक्ति के जैसे विचार होते हैं वैसे ही वह बन जाता है। यदि हम ऊँचा सोचेंगे तो हम ऊँचा बन जायेंगे। इसलिए हमें अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ जीवन-मूल्यों की शिक्षा देकर उनके विचारों को हमेशा ऊँचा बनाये रखते हुए उन्हें सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा देनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि किसी भी महापुरुष ने किसी भी दूसरे महापुरुष का अनुकरण नहीं किया। सभी महापुरुषों ने ने अपना-अपना रास्ता स्वंय बनाया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कहना है कि हमें दूसरे महापुरूषों के विचारों से प्रेरणा तो अवश्य लेना चाहिए किन्तु हमें अपना रास्ता स्वयं निर्धारित करना चाहिए। इसलिए हमें अपना आत्मनिरीक्षण स्वयं करना चाहिए कि हमें क्या करना है? अपने शुद्ध एवं पवित्र हृदय के कारण ही प्रत्येक बालक विश्व का प्रकाश है। इसलिए हमारे बच्चों के जीवन का उद्देश्य भी परमपिता परमात्मा की तरह ही सारी मानवजाति का कल्याण होना चाहिए।
हमारे शरीर का पिता अपने बच्चों के बीच प्रेम, दया, सद्भाव और एकता चाहता है। इसी प्रकार हमारी आत्मा के पिता परमपिता परमात्मा भी अपने सारे बच्चों के बीच एकता चाहता है। इस सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माणकर्ता होने के कारण वे विश्व की सम्पूर्ण मानवजाति में एकता चाहता है। हमारे शरीर के पिता अस्थाई हैं किन्तु हमारी आत्मा के पिता स्थाई हैं। हमारी आत्मा हमारे परमपिता परमात्मा के दिव्य लोक से आई है और मृत्यु उपरान्त उसी दिव्य लोक में वापस लौट जायेंगी। हमारे बच्चे अपने जीवन में वह सब पा सकते हैं जो वे चाहते हैं। यदि हमारे बच्चों के विचार में यह बात आ जाये कि वे उस शक्तिशाली परमपिता परमात्मा के पुत्र हैं जिन्होंने इस सारी सृष्टि का निर्माण किया है, तो वे अपनी पूरी शिद्दत के साथ सम्पूर्ण विश्व की मानवजाति की भलाई के लिए काम करेगें। हमारा व हमारे बच्चों का यह संकल्प होना चाहिए कि हम अपने शरीर के पिता के द्वारा बनाये गये घर के साथ ही अपनी आत्मा के पिता के द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि को भी सुन्दर बनायेंगे। यही एक अच्छे पुत्र की पहचान भी है। कोई भी पिता अपने उस पुत्र को ज्यादा प्रेम करता हैजो कि उसकी बातों को मानता है। सबसे प्रेम करता है। आपसी सद्भावना पैदा करता है। एकता को बढ़ावा देता है। परमात्मा अपने ऐसे ही पुत्रों को सबसे ज्यादा प्रेम करता है जो उनकी शिक्षाओं पर चलकर उनकी बनाई हुई सारी सृष्टि को सुन्दर बनाने का काम करते हैं। परमपिता परमात्मा की बनाई हुई इस सारी सृष्टि में ही हमारे शरीर के पिता ने 4 या 6 कमरों का एक छोटा सा मकान बनाया है। हमें इस 4 या 6 कमरों में रहने वाले अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ ही परमपिता परमात्मा द्वारा बनाई गई इस सारी सृष्टि में रहने वाली मानवजाति से भी प्रेम करना चाहिए। तभी हमारे शरीर के पिता के साथ ही हमारी आत्मा के पिता भी हमसे खुश रहेंगे।
ईश्वर की शिक्षाओं को जानें, उनको समझें और उनकी गहराईयों में जाये और फिर उन शिक्षाओं पर चलें । यही ईश्वर की सच्ची पूजा है और यही हमारी आत्मा का पिता 'परमपिता परमात्मा हमसे चाहता भी है। शरीर चाहे अवतार का हो या संत महात्माओं का हो, माता-पिता का हो, भाई बहन का हो या किसी और का हो, यही पर रह जाता है। जब तक आत्मा शरीर में है तभी तक यह शरीर काम करता है। परमात्मा ने अपनी आज्ञाओं के पालन के लिए हमें यह शरीर दिया है। परमात्मा हमसे कहता है कि तेरी आँखें मेरा भरोसा हैं। तेरा कान मेरी वाणी को सुनने के लिए है। तेरे जो हाथ हैं वो मेरे चिन्ह है। तेरा जो हृदय है मेरे गुणों को धारण करने के लिए हैं। इस प्रकार शरीर को परमात्मा ने हमें अपने काम के लिए अर्थात् ईश्वर को जानने के लिए तथा उसकी पूजा करने अर्थात् उन शिक्षाओं पर चलने के लिए दिया है।
हमें अपने बच्चों के दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाने के साथ ही साथ उन्हें सारे विश्व की मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करना चाहिए। वास्तव में बच्चे संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन में सब कुछ पा सकते हैं। इसलिए बच्चों को चाहिए कि वे अपने चुने हुए कार्यश्रेत्र में सबसे सर्वश्रेष्ठ बनें । वे विश्व के सबसे महान व्यक्ति बनें। वे जिस भी क्षेत्र में जायें, उस पर सबसे ऊपर रहें। डिसीजन मेकर बनें और पूरे विश्व को ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय बनाये और उसे लागू करें वे सारी मानवजाति की सेवा के लिए सारे विश्व का प्रधानमंत्री बनेंसारे विश्व का राष्ट्रपति बनें। सारे विश्व का स्वास्थ्य मंत्री बनें। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे को सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देकर उनके दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाना होगा। उन्हें विश्व नागरिक के रूप में विकसित करना होगा। हमें प्रत्येक बच्चे को सारे विश्व की मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करना हैहमें उन्हें समझाना है कि हम केवल अपने कार्यों में ही न लगे रहें। हम केवल अपने राष्ट्र हित के कार्यों में ही न लगे रहें बल्कि हमें दुनिया के 7 अरब 20 करोड़ लोगों की भलाई के लिए काम करना है। हमें अपने बच्चों के माध्यम से सारे विश्व में परिवर्तन लाना है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम 21वीं शताब्दी में अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उन्हें सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें सम्पूर्ण विश्व की मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करें। |
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